शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

आईना भी उससे जलने लगा धीरे-धीरे

दिल मेरा मचलने लगा धीरे-धीरे
ख्वाब कोई पलने लगा धीरे-धीरे

तन्हा गुज़र रही थी ज़िन्दगी अपनी
वो संग-संग चलने लगा धीरे-धीरे

खुशियों का कोई ठिकाना नहीं आज
ग़मों का सूरज ढलने लगा धीरे-धीरे

वक़्त ने मुझे ठुकरा दिया था इक दिन
आज वही वक़्त पिघलने लगा धीरे-धीरे

आईने में जो खुद को देखा "राज" ने
आईना भी उससे जलने लगा धीरे-धीरे