सोमवार, 23 सितंबर 2013






दिखावा है, अन्दर से नही, इंसान कोई



दीन- धर्म अब ना ईमान कोई 
सच्चे झूठे की ना पहचान कोई 

कोडियों के भाव बिकता जमीर यहाँ
दिखावा है, अन्दर से नही, इंसान कोई 

बहू, बेटियों की करते है दलाली
कोख में बेटी मारने की चलाते, दुकान कोई

मन्दिरों की मूर्तियाँ तक बेच डालते
इन कमबख्तों का नहीं है, भगवान् कोई

घर-घर में ईट से ईट टकरा रही
नहीं दिखाई देता अब, मकान कोई

घरों के आँगन छोटे होते जा रहे ऐ "राज"
बड़े बूढों का घर में नहीं, सम्मान कोई !!

Aakhir en chehroN se nakaab hataauN to hataauN kaeseN ?


Jaane kyou wo hameN dekh ke nazareN churaa leteN haiN
Lekin maiN khud se nazareN churaauN to churaauN kaeseN ?

Sotaa huN to khawab uska, jaaguN to khayaal uska 
Apne es dil-a-naadaaN ko samjhaauN to samjhaauN kaeseN ?

Sare bazaar badnaam kr diya, mujhe mere chahne waale ne
A khudaa, ab tu hi bataa, uski mahfil meiN aauN to aauN kaeseN ?

ZakhmooN se chhalni sinaa leke tadptaa phir rahaa huN maiN
PathroN ke butoN ko apne zakhm dikhaauN to dikhaauN kaeseN ?

Mere apno ne hi booye haiN meri raahoN meiN kaaNteN
Ab un be-parvaa apno ke pass jaauN to jaauN kaeseN ?

Kabhi apne to kabhi begaane yuN hi tukraateN rahe mujhe
Matlbi jahaaN ko, apne dard ki daastaaN sunaauN to sunaauN kaeseN ?

A “Raj” hr koi chehre pe nakaab leke phir rahaa hai
Aakhir en chehroN se nakaab hataauN to hataauN kaeseN ?

हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है

ये पल-पल की बेचैनी मुझे तडपाती है
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है,
मैं जहाँ जाऊ, पीछे- पीछे चली आती है 
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है

मैं किस को सुनाऊ 
मैं किस को बताऊ
क्या हाल मेरे दिल का
मैं किस को दिखाऊ
होश खो जाते है, ये पागल कर जाती है
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है

मैं जहाँ जाऊ, पीछे- पीछे चली आती है
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है

ख़्वाबों में चेहरा, तेरा सनम
तेरा सनम
यादों में पहरा, तेरा सनम
तेरा सनम
चांदनी रातें है, बस तेरी बातें है
कलियाँ खिल जाएँ, जब तू मुस्कुराती है
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है

मैं जहाँ जाऊ, पीछे- पीछे चली आती है
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है

दीवाना हो गया हूँ
मस्ताना हो गया हूँ
तेरे इश्क में,
बेगाना हो गया हूँ
मस्ती छा जाए , जब तू पास बुलाती है
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है

मैं जहाँ जाऊ, पीछे- पीछे चली आती है
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है

ये पल-पल की बेचैनी मुझे तडपाती है
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है,
मैं जहाँ जाऊ, पीछे- पीछे चली आती है
हाँ तेरी याद, तेरी याद, तेरी याद आती है !!



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क्यूँ आज फिर मेरी आँखों से बरसात हुई ?

जिंदगी में देखो ये कैसी काली रात हुई ?
क्यूँ आज फिर मेरी आँखों से बरसात हुई ?

इस कदर नफरत है उनके दिल में, मेरे लिए 
हकीक़त ना सही, ख़्वाबों में तो मुलाक़ात हुई 

वो क्या गए जिंदगी से, जिंदगी ही चली गयी
खुशियों ने दामन छोड़ा, ग़मों की शुरुआत हुई

वो संग-संग है मेरे, पर संग नहीं है मेरे
इश्क, प्यार, मोहब्बत, सभी दिखावटी बात हुई

कैसे छुडाए "राज" इस बेरहम ज़िन्दगी से पीछा
ना चाह के भी जी रहा हूँ, ज़िन्दगी भी हवालात हुई !!

बरसों बाद हँसने की कोशिश की है “ राज ” ने

हो ना जाए वो हमसे खफा, ये डर रहता है 
कर ना दे कोई उसको मुझसे जुदा, ये डर रहता है 

मेरी खामोशी को वो बेवफाई ना समझ लें 
मुझे मान बैठे वो बेवफा, ये डर रहता है 

मुद्दतों बाद किसी को अपना बनाने की चाहत की है 
ज़िन्दगी दे ना दे कहीं दगा , ये डर रहता है 

उसकी आँखों के मैखाने मदहोश कर देते है 
हो ना जाए मुझको और नशा, ये डर रहता है

आग सी लग जाती है जब कोई उसके पास से गुज़र जाता है
कहीं छु ना लें उसको हवा, ये डर रहता है

बरसों बाद हँसने की कोशिश की है “ राज ” ने
कोई दें ना अब मुझको रुला, ये डर रहता है !!

संग-संग मेरे वो , मुस्कुराता क्यों नहीं ?

वो मेरी महफ़िल में, अब आता क्यों नहीं ?
संग-संग मेरे वो , मुस्कुराता क्यों नहीं ?

अपने, ख्वाब एक, रास्ता एक, मंजिल एक 
फिर सारे ख्वाब, संग मेरे , सजाता क्यों नहीं ?

उसके प्यार में, किसी की खैर-खबर ना रहे
इस क़दर टूटकर, प्यार बरसाता क्यों नहीं ?

एक तेरा चेहरा, जो आँखों से हटता नहीं है
कोई और चेहरा, आँखों को भाता क्यों नहीं ?

मेरे दुःख दर्द का, उसे अब एहसास नहीं
मैं रूठ जाऊ, तो वो मुझे मनाता क्यों नहीं ?

दिल में दबी ख्वाहिशें, कब से दम तोड़ रही हैं ?
कुछ मेरी सुन, कुछ अपनी सुनाता क्यों नहीं ?

बिन मांझी, बीच मझधार, खड़ी है किश्ती "राज" की
आखिर मेरी किश्ती, तू उस पार लगाता क्यों नहीं ? 

दोस्तों, मेरे देश का ये क्या हाल हो रहा है ?


दोस्तों, मेरे देश का ये 

क्या हाल हो रहा है ?
देखो हर रोज़ यहाँ
क्या-क्या कमाल हो रहा है ?

गंदी राजनीति ने अपने
देश को डूबो दिया है
विदेशों में जमा है काला धन
अपना देश कंगाल हो रहा है

कभी काटे जाते हैं जवानों के सिर
कभी मारी जाती हैं गोलियां
कभी हर दिन, कभी महीने में
कभी ये हर साल हो रहा है

सरेआम एक मासूम बेटी की
इज्ज़त तक लूट ली जाती है
अब तो घर से अकेले
निकलना भी मुहाल हो रहा है

मंहगाई ने गरीबों के
मुंह से रोटी छीन ली है
इस मंहगाई से लड़ना भी
सरकार के लिए सवाल हो रहा है

धर्म-मजहब के नाम पर
तोड़ा जाता है देश को
पता नही क्या सच है ? "राज"
क्या झूठ, जी का जंजाल हो रहा है !!