सोमवार, 2 मार्च 2015

भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

कुछ अपने घरों में हर साल कन्या पूजन करवाते हैं
कुछ बेदर्दी कोख में बेटी मारने की दूकान चलाते हैं
क्यों बेटों की चाह को हम, मन में पालते हैं ?
अपनी बेटियों को क्यों नही हम संभालते हैं ?
क्या बेटी होना पाप है ? कोई मुझे समझाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

अगर बेटी जन्म ले ले, तो ताने सहती है
बेटी घर का बोझ है, दुनिया ये कहती है
अपने ही घर से निकलना भी दुश्वार है
अपने ही माँ बाप का ये कैसा प्यार है ?
बेटियाँ बोझ नही है, दुनियाँ को ये है बताना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

अपना ये कैसा नंगा संसार है ?
जहां होती आबरू तार-तार है
पूजा करें सरस्वती, काली, माता शेरोवाली की
कस्मे खाते है सभी बेटियोँ की रखवाली की
औरत को देखते ही, क्यों बदलता है ज़माना ?
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

इस पत्थर दुनियाँ का नही कोई जवाब है 
बेटियोँ के लिए ये दुनियाँ बड़ी खराब है
आज का इन्सान खुद को कहता भगवान् है
बेटियों के लिए हर मन में शैतान है
कब होगा बंद ? बेटियोँ पर ज़ुल्म ढाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

धन- दौलत ना मेरे बाबुल के पास है
ये सोच कर ससुराल में बेटी उदास है
दहेज़ की नित नई-नई मांगे होती हैं
अकेले में बैठी बेटी दिन-रात रोती है
कब बंद दहेज़ होगा ? 
कब होगा बंद बेटियों को जलाना ?
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

ये ज़िन्दगी मेरे मन के मुताबिक़ क्यों नही चलती ?

ये ज़िन्दगी मेरे मन के मुताबिक़ क्यों नही चलती ?
ये  शाम  थोड़ा और रूक कर  क्यों नही ढलती ?

ऐ चाँद तू मेरे आँगन में क्यों नही खेलता है ?
एक दिन सुबह भी मेरे संग क्यों नही चलती ?

ये कैसा गम हैं कि मेरा पीछा छोड़ता ही नही हैं ?
आखिर खुशियाँ मेरी झोली में क्यों नही पलती ?

दूर कहीं जाकर बसेरा बना लूँ उसकी निगाहों में मैं
ठोकरें खा -खाकर भी दुनियां क्यों नही संभलती ?

वो मेरी आँखों से दूर हो जाए तो बैचैनी हो जाती है
एक वो है उसको "राज" की कमी क्यों नही खलती ?