शनिवार, 21 नवंबर 2015

किस्मत अपनी के भी कमज़ोर सितारे हैं

  गम के मारे हैं
  कुछ बेचारे हैं

किस्मत अपनी के भी
 कमज़ोर सितारे हैं.......

कहने को अपने हैं
  झूठे सहारे हैं

ज़िन्दगी मझदार में हैं
  दूर किनारे हैं

किस पे यकीं करूँ
   बेवफा सारे है

राज़ उड़ेगा आसमां में
  पकड़ने तारे हैं !!



ठेकेदार इन्हें बनाता कौन है ?

गिरते को उठाता कौन है ?
भूखे को खिलाता कौन है ?
दिलों में खार इतनी है
रूठों को मनाता कौन है ?
खड़े सब तमाशा देखते हैं
लूटती आबरू बचाता कौन है ?
टीवी मोबाइल गेम की दुनिया
पुरानी कहानियां सुनाता कौन है ?
हम अपने कमरों तक सीमित है
हाल पूछने जाता कौन है ?
बचपन बोझ में दब गया यहाँ
खुलकर खिलखिलाता कौन है ?
आपस की जरुरत हैं हम सभी
एक दुसरें को समझाता कौन है ?
देखो रोज़ दंगे करवाते हैं ये
ठेकेदार इन्हें बनाता कौन है ?