शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

JahaaN banaane waale bhagvaan se ladta huN kabhi-kabhi

अपने अन्दर के छुपे इंसान से लड़ता हूँ कभी कभी
जहाँ बनाने वाले भगवान् से लड़ता हूँ कभी कभी

क्यों इस क़दर नफरत है यहाँ सभी के दिलों में
दिलों में बसें हैवान से लड़ता हूँ कभी कभी

मजबूर कर देता है, अपना जिस्म बेचने के लिए जिसको
इन पत्थर इंसानों के जहाँ से लड़ता हूँ कभी कभी

आखिर हम, क्यों छिनते है किसी से जीने का हक
मैं इस मन, बेईमान से लड़ता हूँ कभी कभी

मौत का मंज़र, खून का दरिया बह रहा है हर तरफ़
होंटों पर खिली झूठी मुस्कान से लड़ता हूँ कभी कभी 


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Apne aNdar ke chhupe iNsaan se ladta huN kabhi-kabhi
JahaaN banaane waale bhagvaan se ladta huN kabhi-kabhi

KyoN is qadar nafrat hai yahaaN sabhi ke diloN meiN
DiloN meiN base haivaan se ladta huN kabhi-kabhi

Mazbur kar deta hai, apnaa zism bechne ke liye jisko
In paThar iNsaano ke jahaaN se ladta huN kabhi-kabhi

Aakhir hum, kyoN chheente hai kisi se jeene ka haq
MaiN is mann, be-imaan se ladta huN kabhi-kabhi

Maut ka manzar, khoon ka dariya beh raha hai har taraf
HoNtoN par khili jhuthi muskaan se ladta huN kabhi-kabhi !!

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

Aaina bhi jalne laga dhire-dhire (आईना भी जलने लगा धीरे-धीरे)

दिल मेरा मचलने लगा धीरे-धीरे
ख्वाब कोई पलने लगा धीरे-धीरे

तन्हा गुज़र रही थी ज़िन्दगी अपनी
वो संग-संग चलने लगा धीरे-धीरे

खुशियों का कोई ठिकाना नहीं आज
ग़मों का सूरज ढलने लगा धीरे-धीरे

वक़्त ने मुझे ठुकरा दिया था इक दिन
आज वही वक़्त पिघलने लगा धीरे-धीरे

आईने में जो खुद को देखा "राज" ने
आईना भी उससे जलने लगा धीरे-धीरे