रविवार, 20 नवंबर 2011

रोना ही तो ज़िन्दगी नही है ......

रोना ही तो ज़िन्दगी नही है
कुछ खोना ही तो ज़िन्दगी नही है
कुछ खो कर पाना ही तो ज़िन्दगी है
किसी को हँसाना ही तो ज़िन्दगी है
किसी का दिल दुखाना तो ज़िन्दगी नही है

किसी को ठुकराना ही तो ज़िन्दगी नही है
किसी डुबतें को बचाना ही ज़िन्दगी है
किसी को उठाना ही ज़िन्दगी है
सपने देखना ही तो ज़िन्दगी नही है

क़दमों को रोकना ही तो ज़िन्दगी नही है
सपनों को हकीक़त में बदलना ही ज़िन्दगी है
क़दमों का मंजिल को पा लेना ही ज़िन्दगी है
गिरना, उठना, उठना, गिरना
उठ के फिर से चल पड़ना

और फिर मंजिल को पा लेना ही तो
“राज” ज़िन्दगी है.