शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

"एक सोच"


"एक सोच"

एक सोच जो दिल से बाहर आना चाहती है
दिल से दूर होके भी दिल के करीब रहना चाहती है
एक सोच......................

कैसें संभालें कोई अपने दिल को 
जब शबनम आग लगा दे महफ़िल को
कभी दुनियां की भीड़ से मिलकर 
कभी तन्हाई में खोना चाहती है
एक सोच......................

कभी-कभी होता है अपनों से भी दूर चले जाएं 
आँखों में बहे आंसू, 
करके उन्हें इतना मजबूर चले जाएं
कभी खुद ही हंसा कर दूसरों को
कभी खुद ही रोना चाहती है
एक सोच......................

इन हवाओं के झोंकों की तरह सिमट जाऊं 
बरस कर बादलों की तरह मिट जाऊं
कभी सागरों की गहराई में जाकर 
कभी नीले आसमां में उड़ना चाहती है
एक सोच......................

कभी न ख़त्म होने वाली राहों में
हज़ारों सपने लेकर निगाहों में
कभी वो बसकर सीने के अन्दर
कभी वो "राज" से ही जुदा होना चाहती है
एक सोच......................

आईना भी उससे जलने लगा धीरे-धीरे

दिल मेरा मचलने लगा धीरे-धीरे
ख्वाब कोई पलने लगा धीरे-धीरे

तन्हा गुज़र रही थी ज़िन्दगी अपनी
वो संग-संग चलने लगा धीरे-धीरे

खुशियों का कोई ठिकाना नहीं आज
ग़मों का सूरज ढलने लगा धीरे-धीरे

वक़्त ने मुझे ठुकरा दिया था इक दिन
आज वही वक़्त पिघलने लगा धीरे-धीरे

आईने में जो खुद को देखा "राज" ने
आईना भी उससे जलने लगा धीरे-धीरे

मेरी पुकार भी सुन ले भगवान


मेरी पुकार भी सुन ले भगवान
अत्याचार से कैसे बचे इंसान

हर तरफ भ्रष्टाचार का हाहाकार है
दे जो रिश्वत उसी की पुकार है
मुश्किलों में पड़ी है गरीबों की जान
मेरी पुकार भी सुन ले भगवान

मजहब के नाम पर लोग भड़काएं जाते हैं
बेकसूरों का खून बहाकर सबूत मिटाए जाते हैं
काला धंधा करने वाले सफ़ेद कपड़ों में है महान
मेरी पुकार भी सुन ले भगवान

नशे का सरेआम खुलता बाजार है
नारी का यहाँ होता व्यापार है
बेटियों को मार कर छीन रहे हैं उनकी मुस्कान
मेरी पुकार भी सुन ले भगवान

फरियाद सुनने वाले फिर कोई चमत्कार कर दे
"राज" की विनती है कोई नया अवतार कर दे
डर लगता है, कहीं मान रहे, ना रहे सम्मान
मेरी पुकार भी सुन ले भगवान  !!