शुक्रवार, 4 मई 2018

कुर्सी की खातिर दौड़ मियाँ*



















अरे कुर्सी की खातिर दौड़ मियाँ
करनी जनता की फिक्र छोड़ मियाँ
गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी, भगाएंगे
नए नए जुमलों का बम फोड़ मियाँ
रस्मों रिवाजों में उलझ गया इंसान
बेमतलब के रस्मों रिवाज तोड़ मियाँ
बारूदी बिसात बिछाए बैठी दुनियाँ
नम्बर वन बनने की मची होड़ मियाँ
सब अपने है रिश्तों में कोई फर्क नही
नही आता हमे गुणा भाग जोड़ मियाँ
बहू के संग संग दहेज भी मांगे जो
ऐसे लालची लोंगों से रिश्ता तोड़ मियाँ
ये जो पड़ोसी रोज आंख दिखाता है
"राज़" एक दिन अच्छे से गर्दन मरोड़ मियाँ

©® *राजीव शर्मा "राज़"*
*लुधियाना*
Rajeev Sharma RAJ

अच्छी आज दोस्ती निभाई तूने


मेरी जग हसाई कराई तूने
अच्छी आज दोस्ती निभाई तूने

जीवन में हमारे भरा अंधेरा
घर अपने दिवाली मनाई तूने

माना था तुझे ही यहाँ पर अपना
फिर क्यूं आग घर में लगाई तूने

जीना चाहता साथ में तेरे मैं
क्यूँ दिल से मुहब्बत मिटाई तूने

आखिर क्यूँ हुआ बेवफा वो दोस्तों
जिस पर "राज़" ये जाँ लुटाई तूने ।

राजीव शर्मा "राज़"
लुधियाना
Rajeev Sharma RAJ