सोमवार, 23 सितंबर 2013

बरसों बाद हँसने की कोशिश की है “ राज ” ने

हो ना जाए वो हमसे खफा, ये डर रहता है 
कर ना दे कोई उसको मुझसे जुदा, ये डर रहता है 

मेरी खामोशी को वो बेवफाई ना समझ लें 
मुझे मान बैठे वो बेवफा, ये डर रहता है 

मुद्दतों बाद किसी को अपना बनाने की चाहत की है 
ज़िन्दगी दे ना दे कहीं दगा , ये डर रहता है 

उसकी आँखों के मैखाने मदहोश कर देते है 
हो ना जाए मुझको और नशा, ये डर रहता है

आग सी लग जाती है जब कोई उसके पास से गुज़र जाता है
कहीं छु ना लें उसको हवा, ये डर रहता है

बरसों बाद हँसने की कोशिश की है “ राज ” ने
कोई दें ना अब मुझको रुला, ये डर रहता है !!