अभी हमें एक दुसरे के घर ढहाने है
अभी हमे और मन्दिर मस्जिद बनाने है
फुर्सत नही हमें देश के हित में सोचें
कुर्सी की खातिर और झगड़े कराने है
सियासती चालें चल चल कर अब हमें
बच्चें कुछ बूढ़े कुछ और इंसान जलाने है
इन गद्दारों का कोई मजहब नही होता है
मासूमों की लाश पर झूठें आसूं बहाने है
अभी हमे और मन्दिर मस्जिद बनाने है
फुर्सत नही हमें देश के हित में सोचें
कुर्सी की खातिर और झगड़े कराने है
सियासती चालें चल चल कर अब हमें
बच्चें कुछ बूढ़े कुछ और इंसान जलाने है
इन गद्दारों का कोई मजहब नही होता है
मासूमों की लाश पर झूठें आसूं बहाने है
©®राजीव शर्मा "राज"
लुधियाना
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