शुक्रवार, 14 मई 2010

ज़िन्दगी के किस-किस सवालात से लडूँ

ज़िन्दगी के किस-किस सवालात से लडूँ
खुद से लडूँ या हालात से लडूँ ....

दिन के उजाले से ही डर लगता है मुझे
कैसें इस तन्हाई भरी रात से लडूँ ....

चंद सिक्कों की खन-खन का दामन थाम लिया है तुने
कब तक तेरे इस बदले हुए ख्यालात से लडूँ ....

दे कोई ऐसी दुआ की "राज" की ज़िन्दगी की शाम हो जाये
आखिर कब तलक मैं इस ज़िन्दगी की हवालात से लडूँ ....

सच का सामना करने से कतरा रहें हैं लोग,

क्यों खुद से इस कदर घबरा रहें हैं लोग
सच का सामना करने से कतरा रहें हैं लोग,

कोई चीख- पुकार सुनाई नहीं देती इनको
ज़िन्दगी में ऐसे भागे जा रहें हैं लोग,

सरेआम आबरू लूट जाती है यहाँ एक औरत की
दूसरों के आंसुओं पर खुंशियाँ मना रहें हैं लोग,

आशिकों को चढ़ा देते है सूली पर
और गीत प्रेम का गा रहें हैं लोग,

सदियों से लगा रखा है पहरा प्यार पर
लेकर सहारा झूठ का, सच को मिटा रहें हैं लोग,

"राज" सच है ये, ये दुनियाँ सचमुच पत्थर दिल है
चंद पल की खुंशी के लिए,अपनों का खून बहा रहें हैं लोग !!

" मैं और मेरी चाहत "

दिल मे उठे कुछ सवालों के जवाब चाहता हूँ मैं
बेगानों से क्या, अपनों ,से कुछ जवाब चाहता हूँ मैं,
आने से पहले ही ना जाने कितनी ज़िन्दगी खत्म कर दी हमनें
और कितनी ज़िन्दगी तबाह करनी है उनका हिसाब चाहता हूँ मैं,
दिल मे उठे कुछ सवालों के जवाब चाहता हूँ मैं.......

कुछ कमर तोड़ दी मंहगाई ने, कुछ आपसी लड़ाई ने
दर-दर कि ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया ,
इज्जत कि दो रोटी कि भरपाई ने
गरीबों में अपनी खुशबूं फैलाए, ऐसा गुलाब चाहता हूँ मैं,
दिल मे उठे कुछ सवालों के जवाब चाहता हूँ मैं......

डरी-डरी, सहमी- सहमी सी है कुछ निगाहें
आजाद होकर भी गुलाम है उनकी राहें,
निडर, बैखोफ होकर जिए, भारत कि हर नारी
अधूरा है, पूरा हो जाये, ये ख्वाब चाहता हूँ मैं,
दिल मे उठे कुछ सवालों के जवाब चाहता हूँ मैं......

चंद सिक्कों के लिए अपनी इज्जत का सोदा कर रहे है
अपने घरों मे दोस्तों के भेष मे दुश्मन भर रहे है,
"राज" को अपनी धरती फिर से गुलाम होती नज़र आ रही है
मिटा दे जो दुश्मनों को, फिर कोई आजाद जैसा नवाब चाहता हूँ मैं,
दिल मे उठे कुछ सवालों के जवाब चाहता हूँ मैं......

गुरुवार, 13 मई 2010



 आओं पेड़ लगाएं 


पेड़ों के दर्द को क्यों नही समझते हम
पेड़ों के दर्द को कम क्यों नही करते हम
एक पेड़ तुम भी लगाओ
एक पेड़ हम भी लगाएं
जिस बंजर भूमि पर है मायूसी
हर उस कोने में हरियाली लाएं
कस्में तो खा लेते है हम सब
पर उन कस्मों पर क्यों नही चलते हम
पेड़ों के दर्द को क्यों नही समझते हम...............
पेड़ लगाएंगे तो फल भी खाएंगे
लकड़ियाँ तो मिलेंगी ही, छाया भी पाएंगे
जब-जब ये बारिश आएगी
पेड़ों के गीत सुनाएगी
पेड़ों में भी तो जीवन है
फिर पेड़ काटते वक़्त क्यों नही डरते हम
पेड़ों के दर्द को क्यों नही समझते हम...............
हरा-भरा रहेगा आँगन अपना
पेड़ों संग ही जुड़ा है जीवन अपना
पेड़ों को काटने वालो कुछ तो शर्म करो
अपने पत्थर दिल को थोडा सा नर्म करो
सब को पता है पेड़ ही तो जीवन है
फिर मोम की तरह क्यों नही पिघलते हम
पेड़ों के दर्द को क्यों नही समझते हम...............
पेड़ों के दर्द को कम क्यों नही करते हम !!