शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

कभी हम, जलते से कभी वो, जलते से

कभी हम, जलते से 
कभी वो, जलते से 
दिल ही दिल में अरमां
दिन-रात, पिंघलते से 

दुश्मन हुए कामयाब 
अपनी हर एक चालों में
और हम रह गए बस
यूँ ही हाथ, मलते से

बेगानों ने लगाई आग
जब मेरे इर्द- गिर्द
मेरे अपने, मुँह फेरकर
जाते दिखाई दिए, चलते से

आसमां में उड़ने वाले
मिलना एक दिन मिटटी में है
देखेंगें तुझे एक दिन
सूरज की तरां, ढलते से

वो बेवफा, ज़माने की दौड़ में
शामिल होना चाह रहा है
और हम वफ़ा की खातिर , रहे
कभी गिरते, तो कभी, संभलते से

मतलब की इस दुनियाँ में
कोई सच्चा नहीं है अब तो
देखा है, यहाँ लोगों को
वक़्त पड़ने पर, बदलते से

दुश्मनों ने तो मिटाने की
पुरजोर कोशिश भी की "राज" को
सलामत हूँ, क्योकि हम रहे
माँ की दुआओं में, पलते से !!






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"Raj" ke maRz ki, tu hi dawaa ho gayaa

Jab se tu mujhse, judaa ho gayaa
Sach yaar tu bewafaa ho gayaa

Aesi kyaa mazburiyaaN thi teri
Kyou mujhse tu khafaa ho gayaa

Sath-sath chalne ka waada thaa
Akele jeenaa bhi, sazaa ho gaya

Kyaa bataauN, kitnaa chahtaa huN tujhe
Tu hi rab, tu hi meri duaa ho gayaa

Mere jeene ki wajaH bhi to tu hi hai
"Raj" ke maRz ki, tu hi dawaa ho gayaa



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बहाना पड़े खून, हालात इतने बिगड़ गए क्यों ?

अलग-अलग धर्मों के लोग, यूँ लड़ गए क्यों ?
इंसान से इंसान आपस में, भिड गए क्यों ?

सभी अब तो एक दूसरे ज़रूरत बन चुकें हैं 
फिर ये बिना वजह के दंगे, छिड गए क्यों ?

बैठकर समस्या का हल निकाला जा सकता है
बहाना पड़े खून, हालात इतने बिगड़ गए क्यों ?

कौन कसूरवार है, कौन बेकसूर, ये तो वक़्त जाने

पर सियासती खेल में, बेकसूर उजड़ गए क्यों ?



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वो तेरे संग बीता ज़माना, याद आता है

वो तेरा छुप के मुस्कुराना, याद आता है 
वो तेरा यूँ खिलखिलाना, याद आता है 

वो तेरा मुझको सताना, याद आता है 
वो तेरा मुझको तडपाना, याद आता है 

वो तेरा छत पर आना, याद आता है 
वो बाहें फैलाकर बुलाना, याद आता है 

वो तेरा रूठकर मनाना, याद आता है 

वो बात-बात पे समझाना, याद आता है

वो देखकर चेहरा छुपाना, याद आता है
वो मेरे खतों को जलाना, याद आता है

वो तेरे संग बीता ज़माना, याद आता है
वो आंसुओं में भीग जाना, याद आता है !!




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