शनिवार, 7 मार्च 2015

पा-पा, पा-पा कह कर पास बुलाना

वो तेरा खिलखिलाना 
वो तेरा तुतलाना 
पल-पल में रो देना
पा-पा, पा-पा कह कर पास बुलाना
हर पल याद आता है मुझे


ऊगली पकड़कर चलना 
गिर कर फिर से संभलना
आँखों से ओझल होते ही
वो मेरी आँखों का मचलना
हर पल याद आता है मुझे


वो तेरे चेहरे की मासूमियत 
वो तेरी छोटी-छोटी सी शरारत
बात-बात पर गुस्सा आना
बात-बात पर सबको हँसाना
हर पल याद आता है मुझे


सो जाने पर तुझको निहारना
आते ही घर तुझको पुकारना
तेरे बिना वक़्त जैसे चलता ही नही
हर वक़्त तेरे संग गुजारना
हर पल याद आता है मुझे


सोना-चाँदी सब बेकार है
"राज" की हर खुंशी है तू
तेरी हर खुंशी को पूरा करना
तेरा दामन खुंशियों से भरना 
हर पल याद आता है मुझे


चलेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग

चलेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग
रहेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग

आ उड़ बादलों को छू लें
उड़ेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग

खुशबूं प्यार की फैला ज़रा
खिलेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग

चांदनी बन मेरे आँगन आ
ढलेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग

प्यार का नगमा कोई छेड़ें
कहेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग

खुशियों को जी लें कुछ पल
हँसेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग

चलेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग
रहेगी ज़िन्दगी तेरे ही संग



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chalegi ziNdagi tere hi saNg
rahegi ziNdagi tere hi saNg

aa uad baadaloN ko chhu leN
uadegi ziNdagi tere hi saNg

khushbuN pyaar ki phailaa zaraa
khilegi ziNdagi tere hi saNg

chaNdani ban mere aaNgan aa
dhalegi ziNdagi tere hi saNg

pyaar ka nagamaa koi chhedeN
kahegi ziNdagi tere hi saNg

khushiyoN ko jee leN kuch pal
hasegi ziNdagi tere hi saNg

chalegi ziNdagi tere hi saNg
rahegi ziNdagi tere hi saNg

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है...........

मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है
कुछ जिद्दी, कुछ नक् चढ़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

अब अपनी हर बात मनवाने लगी है
हमको ही अब वो समझाने लगी है
हर दिन नई नई फरमाइशें होती है
लगता है कि फरमाइशों की झड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

अगर डाटता हूँ तो आखें दिखाती है
खुद ही गुस्सा करके रूठ जाती है
उसको मनाना बहुत मुश्किल होता है
गुस्से में कभी पटाखा कभी फूलझड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

जब वो हस्ती है तो मन को मोह लेती है
घर के कोने कोने मे उसकी महक होती है
कई बार उसके अजीब से सवाल भी होते हैं
बस अब तो वो जादू की छड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है

घर आते ही दिल उसी को पुकारता है
"राज" सपने सारे अब उसी के संवारता है
दुनियाँ में उसको अलग पहचान दिलानी है
मेरे कदम से कदम मिलाकर वो खड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है !!



















































गुरुवार, 5 मार्च 2015

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बुधवार, 4 मार्च 2015

बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली



बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली
रंगो की तरां दोस्तों से भरी थी अपनी झोली

चांदनी रात में सब मिलकर तूफानी करते थे
किसी की नही सुनते थे मनमानी करते थे
दुनियां के दुःख सुख से बेपरवाह होते थे
अपने ही गीत होते अपनी ही होती बोली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली

आज इसके कल उसके उपले तोड़े जाते
लाख बचाता कोई पानी के मटके फोड़े जाते
बाहर रखा सामान और के घर पंहुचा दिया जाता
शाम ढलते ही जब दोस्तों की बनती थी टोली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली

गुलाल लगाने एक दुसरे के घर जाते थे
जहां चलता गाना बजाना नाचने लग जाते थे
जात पात का भेद नही कहीं भी पकोड़े खा आते थे
तब रंग और पिचकारी थी नही थी बंदूक की गोली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली

छुपकर एक दुसरे को रंगों से जब भिगोते थे
रंगों से रंगे चेहरे तब देखने लायक होते थे
घर आते तो घरवाले बहुत हँसा करते थे
जब चेहरे पर रंगों से बनी होती थी रंगोली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली

नीम के पेड़ के नीचे जब महफ़िल सजती थी
मेरे गाँव में खुशियाँ ही खुशियाँ बसती थी
मेरे गाँव की खुशियों को किसी की नज़र ना लगे
"राज" तेरे गाँव पिंडोरा में यूँही मनती रहे हर होली
बहुत याद आती है मुझे अपने गाँव की होली

सोमवार, 2 मार्च 2015

भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

कुछ अपने घरों में हर साल कन्या पूजन करवाते हैं
कुछ बेदर्दी कोख में बेटी मारने की दूकान चलाते हैं
क्यों बेटों की चाह को हम, मन में पालते हैं ?
अपनी बेटियों को क्यों नही हम संभालते हैं ?
क्या बेटी होना पाप है ? कोई मुझे समझाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

अगर बेटी जन्म ले ले, तो ताने सहती है
बेटी घर का बोझ है, दुनिया ये कहती है
अपने ही घर से निकलना भी दुश्वार है
अपने ही माँ बाप का ये कैसा प्यार है ?
बेटियाँ बोझ नही है, दुनियाँ को ये है बताना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

अपना ये कैसा नंगा संसार है ?
जहां होती आबरू तार-तार है
पूजा करें सरस्वती, काली, माता शेरोवाली की
कस्मे खाते है सभी बेटियोँ की रखवाली की
औरत को देखते ही, क्यों बदलता है ज़माना ?
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

इस पत्थर दुनियाँ का नही कोई जवाब है 
बेटियोँ के लिए ये दुनियाँ बड़ी खराब है
आज का इन्सान खुद को कहता भगवान् है
बेटियों के लिए हर मन में शैतान है
कब होगा बंद ? बेटियोँ पर ज़ुल्म ढाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

धन- दौलत ना मेरे बाबुल के पास है
ये सोच कर ससुराल में बेटी उदास है
दहेज़ की नित नई-नई मांगे होती हैं
अकेले में बैठी बेटी दिन-रात रोती है
कब बंद दहेज़ होगा ? 
कब होगा बंद बेटियों को जलाना ?
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना
भगवान् अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना

ये ज़िन्दगी मेरे मन के मुताबिक़ क्यों नही चलती ?

ये ज़िन्दगी मेरे मन के मुताबिक़ क्यों नही चलती ?
ये  शाम  थोड़ा और रूक कर  क्यों नही ढलती ?

ऐ चाँद तू मेरे आँगन में क्यों नही खेलता है ?
एक दिन सुबह भी मेरे संग क्यों नही चलती ?

ये कैसा गम हैं कि मेरा पीछा छोड़ता ही नही हैं ?
आखिर खुशियाँ मेरी झोली में क्यों नही पलती ?

दूर कहीं जाकर बसेरा बना लूँ उसकी निगाहों में मैं
ठोकरें खा -खाकर भी दुनियां क्यों नही संभलती ?

वो मेरी आँखों से दूर हो जाए तो बैचैनी हो जाती है
एक वो है उसको "राज" की कमी क्यों नही खलती ?