सोमवार, 17 मई 2010

हमें ज़िन्दगी की चाहत ओर नही है अभी....

हमनें की वफ़ा थी, पर वो बेवफा थी
शुरू हुआ ग़मों का सिलसिला, खुंशियाँ खफा थी !!


जो गुजरी है अब तक, बड़ी मुश्किल से गुज़री है
हमें ज़िन्दगी की चाहत ओर नही है अभी
सारी कसमें भी तोड़ी, प्यार वाली नज़रें भी मोडी
पत्थर दिल बनकर ऐसे जा रहे है जैसे हैं कोई अजनबी
हमें ज़िन्दगी की चाहत ओर नही है अभी
मैं अक्सर तन्हाइयों मे अकेले ही रोते रहता हूँ
नफरत हो गयी है खुद से मुझको
क्यों अब इस ज़िन्दगी का बोझ थोते रहता हूँ
कोई आके बता दे, इस दिल को समझा दे
सारे अरमां बुझ गए हैं
कैसे होंगी पूरी, जो दिल में , अधूरी ख्वाहिशें है दबी
हमें ज़िन्दगी की चाहत ओर नही है अभी
वो हमें छोड़कर चले गए, ऐसे
एक रात के मुसाफिर हो कोई, जैसे
उनको भी याद आएँगे, मेरे साथ गुज़ारे वो लम्हें
नगें पैरों से वो तपती धुप में छत पे आना
चांदनी रातों में बाहों को फैलाकर पास बुलाना
दिल की दिवारों पे मोजूद है अब तक
तेरी मोहब्बत के निशां वो सभी
हमें ज़िन्दगी की चाहत ओर नही है अभी
साथ मेरे तुने वो किया जिसकी मुझे ना आस थी
उस मोड़ पर मेरा हाथ छोड़ा
जब ना किनारा, ना मांझी, ना किश्ती पास थी
तेरा हर सितम गले से लगाया
जो भी सितम बेवफा तुने है ढाया
मेरी जां ये तेरी मेहरबानी है
क्यों रो रही है आँखे, क्यों इनमे पानी है
जिसपे है बीती ये उस "राज" की कहानी है
हो सकें तो करना माफ़ हमकों
तेरी बेवफा दुनियां में लोटकर हम ना आएँगे कभी
हमें ज़िन्दगी की चाहत ओर नही है अभी
हमें ज़िन्दगी की चाहत ओर नही है अभी

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