शुक्रवार, 14 मई 2010

ज़िन्दगी के किस-किस सवालात से लडूँ

ज़िन्दगी के किस-किस सवालात से लडूँ
खुद से लडूँ या हालात से लडूँ ....

दिन के उजाले से ही डर लगता है मुझे
कैसें इस तन्हाई भरी रात से लडूँ ....

चंद सिक्कों की खन-खन का दामन थाम लिया है तुने
कब तक तेरे इस बदले हुए ख्यालात से लडूँ ....

दे कोई ऐसी दुआ की "राज" की ज़िन्दगी की शाम हो जाये
आखिर कब तलक मैं इस ज़िन्दगी की हवालात से लडूँ ....

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