शुक्रवार, 14 मई 2010

सच का सामना करने से कतरा रहें हैं लोग,

क्यों खुद से इस कदर घबरा रहें हैं लोग
सच का सामना करने से कतरा रहें हैं लोग,

कोई चीख- पुकार सुनाई नहीं देती इनको
ज़िन्दगी में ऐसे भागे जा रहें हैं लोग,

सरेआम आबरू लूट जाती है यहाँ एक औरत की
दूसरों के आंसुओं पर खुंशियाँ मना रहें हैं लोग,

आशिकों को चढ़ा देते है सूली पर
और गीत प्रेम का गा रहें हैं लोग,

सदियों से लगा रखा है पहरा प्यार पर
लेकर सहारा झूठ का, सच को मिटा रहें हैं लोग,

"राज" सच है ये, ये दुनियाँ सचमुच पत्थर दिल है
चंद पल की खुंशी के लिए,अपनों का खून बहा रहें हैं लोग !!

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