सोमवार, 23 सितंबर 2013

संग-संग मेरे वो , मुस्कुराता क्यों नहीं ?

वो मेरी महफ़िल में, अब आता क्यों नहीं ?
संग-संग मेरे वो , मुस्कुराता क्यों नहीं ?

अपने, ख्वाब एक, रास्ता एक, मंजिल एक 
फिर सारे ख्वाब, संग मेरे , सजाता क्यों नहीं ?

उसके प्यार में, किसी की खैर-खबर ना रहे
इस क़दर टूटकर, प्यार बरसाता क्यों नहीं ?

एक तेरा चेहरा, जो आँखों से हटता नहीं है
कोई और चेहरा, आँखों को भाता क्यों नहीं ?

मेरे दुःख दर्द का, उसे अब एहसास नहीं
मैं रूठ जाऊ, तो वो मुझे मनाता क्यों नहीं ?

दिल में दबी ख्वाहिशें, कब से दम तोड़ रही हैं ?
कुछ मेरी सुन, कुछ अपनी सुनाता क्यों नहीं ?

बिन मांझी, बीच मझधार, खड़ी है किश्ती "राज" की
आखिर मेरी किश्ती, तू उस पार लगाता क्यों नहीं ?