दीन- धर्म अब ना ईमान कोई
सच्चे झूठे की ना पहचान कोई
कोडियों के भाव बिकता जमीर यहाँ
दिखावा है, अन्दर से नही, इंसान कोई
बहू, बेटियों की करते है दलाली
कोख में बेटी मारने की चलाते, दुकान कोई
मन्दिरों की मूर्तियाँ तक बेच डालते
इन कमबख्तों का नहीं है, भगवान् कोई
घर-घर में ईट से ईट टकरा रही
नहीं दिखाई देता अब, मकान कोई
घरों के आँगन छोटे होते जा रहे ऐ "राज"
बड़े बूढों का घर में नहीं, सम्मान कोई !!
सच्चे झूठे की ना पहचान कोई
कोडियों के भाव बिकता जमीर यहाँ
दिखावा है, अन्दर से नही, इंसान कोई
बहू, बेटियों की करते है दलाली
कोख में बेटी मारने की चलाते, दुकान कोई
मन्दिरों की मूर्तियाँ तक बेच डालते
इन कमबख्तों का नहीं है, भगवान् कोई
घर-घर में ईट से ईट टकरा रही
नहीं दिखाई देता अब, मकान कोई
घरों के आँगन छोटे होते जा रहे ऐ "राज"
बड़े बूढों का घर में नहीं, सम्मान कोई !!